बाधाओं के सागर में राष्ट्रमंडल की नैया,कौन है खिवइया हम ही हैं भइया -सन्नी कुमार
भारत को जब से राष्ट्रमंडल खेलो की मेजबानी मिली है तब से लगातार शंकाओ की नाँव ऊहा-पोह के समुद्र में आलोचनाओ से जूझ रही है
बार बार यह कयास लगाए जा रहे हैं कि हम इसकी मेजबानी कर सकते है या नहीं? सवाल जितना आसान लगता है ,इसका जवाब उतना ही मुश्किल है
राष्ट्रमंडल खेल ओलम्पिक के बाद दूसरा बड़ा खेल उत्सव है
इसलिये जैसी अपेक्षाएँ ओलंपिक के साथ होती हैं वैसी ही राष्ट्रमंडल खेलों के साथ भी होती हैं
इसका आयोजन भी उतना ही सुव्यवस्थित , भव्य और नयनप्रिय होना चाहिए
इसके आयोजन पर सारे दुनिया की निगाहे लगी रहती है
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते है
राष्ट्रमंडल खेलो का आयोजन हम सफलतापूर्वक ज़रूर पूरा करेंगे पर फिर भी इसके सफलतापूर्वक आयोजन में कई बड़ी बाधाएँ सुरसा के समान मुहँ बाए खड़ी हैं
सबसे बड़ी जो चिंता है सभी मैदानों और सडकों का काम समय से पीछे चल रहा है
अगर मैदान ही तैयार नहीं होंगे तो खेल कहाँ होंगे ?पर जैसे किसी क्रिकेट मैच में शुरू से सब कुछ ठीक चल रहा होता है तो कोई किसी पर ध्यान नहीं देता किन्तु जैसे ही अंत में कम बॉल में ज्यादा रन बनाने होते है तो सभी की नज़रे उस बल्लेबाज़ पर जा टिकती है जो उस समय चौके छक्के मार कर टीम को जीत दिलाता है ठीक उसी तरह राष्ट्रमंडल खेलो की तैयारियाँ भी है,समय के दबाव के साथ सभी काम समय पर पूरा हो जाएँगे
कहते है न कि जो अंतिम गेंद पर छक्का मारे वही असली हीरो होता है
ठीक उसी तरह राष्ट्रमंडल खेलो की तैयारियाँ भी पूरी कर ली जाएंगी और सरकार वाह वाही लूट ले जाएगी हम भी यही आशा करते है की खेलो से पहले सभी काम पूरे हो जाएँ
दूसरी समस्या जो आलोचनाओ के घेरे में खड़ी है वह है दिल्ली का पर्यावरण! जगह जगह निर्माण कार्य होने के कारण हवा में धूल कण की मात्रा में बढ़ोतरी हो गई है जो एक भीषण समस्या है
खेलों से पहले दिल्ली में मानसून दस्तक देगा तो आशा की जा सकती है कि मानसून के पानी से पर्यावरण की समस्याएँ कुछ हद तक तो धुल ही जाएंगी,वह अलग बात है कि मानसून के आने के बाद गड्ढे और कीचड़ अपने आप में नयी समस्या बन जाएँगे
निर्माण कार्य के अधूरा होने के अतिरिक्त एक सामाजिक समस्या है वह है हमारी ,आपकी और दिल्ली पुलिस की भाषा! दिल्ली पुलिस की वाचिक शैली की प्रतिष्ठा जग जाहिर है
दिल्ली पुलिस के बात करने का तरीका किसी से छुपा नहीं है
खेलो में देश -विदेश के हजारों लोग इन खेलो का मज़ा लेने आएँगे तो यह जरुरी है कि हम अपने बात करने के ढंग में सुधार लाएँ
जब सुधारेंगे हम अपने बात और विचार
तभी राष्ट्रमंडल खेलो की नैया होगी पार
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