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Tuesday, May 4, 2010
दिल्ली : भारत की जान/ जंतर मंतर/ पुनीत कुमार
तेरी आँखे भूलभूलैया, तेरी बातें भूलभूलैया...........अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस लेखक को क्या हो गया है, जो भूलभूलैया की बातें कर रहा है. दोस्तों में भूलभूलैया की बातें इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आज मैं ले चलूँगा,दिल्ली के सबसे रहस्यमयी भूलभूलैया जंतर मंतर में, तो दोस्तों आइये जानते है जंतर मंतर के राज़ को और भी करीब से......
जंतर मंतर
जंतर मंतर दिल्ली के कनाट प्लेस में स्थित है, इसका निर्माण खगोल शास्त्र प्रेमी सवाई राजा जय सिंह द्वितीय ने १७२४ में करवाया था
इसको बनवाने में ६ साल लग गए थे. यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है, जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन , मथुरा, और वाराणसी में भी किया था. दिल्ली का जंतर मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है. मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी. इसी को ख़त्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर मंतर का निर्माण करवाया था. ग्रहों की गति नापने के लिए यहाँ विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाये गए हैं.1948 में इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिला
सम्राट यंत्र ; -
सूर्ये की सहायता से वक़्त और ग्रहो की स्थिति की जानकारी देता है.
मिश्र यंत्र : -
वर्ष के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन को नाप सकता है.
राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र : -
यह यंत्र खगोलीय पिंडो की गति के बारे में बताते है. राम यंत्र गोलाकार बने हुए है.
राजा जय सिंह तथा उनके राज ज्योतिषी पं० जगन्नाथ ने इसी विषय पर " यंत्र प्रकार " तथा " सम्राट सिद्धांत" नामक ग्रन्थ लिखे. ५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में ये वेधशालाएँ बाद में बनने वाले तारामंडलो के लिए प्रेरणा और जानकारी के स्त्रोत बनी. हाल ही में दिल्ली के जंतर मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिये प्रमुख खगोलविद द्वारा विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी. इस अध्ययन में नेहरु तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्त्रोनाम्र्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे..
बड़ी बड़ी इमारतों से घिर जाने के कारण आज इनके अधययन सटीक नतीजे नहीं दे पाते है. यह दिल्ली में जन आंदोलनों प्रदर्शनो, धरनों की एक जानी मानी जगह भी है.....
तो भाइयो, देखा आपने कितना अद्भुत और अनोखा है हमारा जंतर मंतर
और हो भी क्यों न,!आखिर हमारी दिल्ली के लोगो ने इसको सही- सलामत रख कर अभी तक इसकी खूबसूरती को ज्यों का त्यों रखा है. तो दोस्तों, अब मैं चलता हूँ और अगली बार फिर ऐसे ही खूबसूरत सैर पर मैं आपको ले चलूँगा. तब तक के लिए जय जंतर मंतर की............................
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