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Wednesday, July 28, 2010

एक बंदर स्टेडियम के अंदर


जी चौंकये नहीं,ये कोई हॉलीवुड की कोई हिंदी में डब की गयी फिल्म नहीं है
बल्कि राष्ट्रमंडल खेलों के टेस्ट इवेंट के एक नये प्रशंसक की बात है|हुआ यूँ कि नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में इन दिनों तैराकी की फेडरेशन कप प्रतियोगिता चल रही है|
मैं बतौर कमेंटेटर आज अपना काम कर रही थी यानी कमेंट्री दे रही थी|अचानक स्टेडियम में सभी लोग कमेंट्री बॉक्स की ओर देखने लगे|वैसे तो दर्शकों में हम कमेंटेटरों को देखने की उत्सुकता होती है,लेकिन जब पूरा स्टेडियम ही आपकी ओर देखने लगे तो अजीब सा लगता है|फिर सामने के मॉनीटर में देखने से पता चला कि हमारा एक अत्यंत प्रशंसक स्टेडियम की सुरक्षा को धता बताते हुए बिना पास और टिकट के खिड़की के रास्ते स्टेडियम में आ भी गया है|सभी दर्शक राष्ट्रीय तैराकों के प्रदर्शन को छोड़ कर बंदर के मुरीद हो गये है|
और हमने भी ठंडी साँस ली क्योंकि दर्शकों का उत्साह हमारे लिये न होकर उस साहसी बंदर के लिये था जिसने दिल्ली पुलिस की सुरक्षा को कूद फाँद कर पार किया और वी.आई.पी. सीट को हथिया लिया

5 comments:

  1. Your experience is absolutely fantastic.People these days are more interested in looking at monkey or people who are like monkey instead of the players be it stadium or real life.
    Ajay Singh "Ekal"

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  2. जिस तरह से पूरी दिल्ली में बंदरों ने उत्पात मचाया हुआ है और माननीय उच्च न्यायालय ने भी इनके उत्पात को रोकने के लिए म्युनिसिपैलिटी को सख्त आदेश जारी किए हैं.भारतीय सेना भी अपने कार्यालय को उनके हमले से रोकने में नाकामयाब रही है...उसे देखते हुए राष्ट्रमंडल खेलों में विदेशी खिलाड़ियों को उनके उत्पात से बचाने के लिए और वानर सेना का मुकाबला करने के लिए लंगूरों की सेना बनानी होगी. रेल मंत्रालय और दिल्ली स्थित भारत सरकार के अनेक कार्यालयों ने इनसे निबटने के लिए लंगूरों की अपने कार्यालय में विधिवत् नियुक्ति और तैनाती कर रखी है.कलमाड़ी जी को भी यही करना होगा...
    विजय

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  3. वाह ! क्या रोमांचक अनुभव रहा । बंदरों ने मनचाही कॉमेंटरी के लिए धरना देने की सोची होगी ।

    वशिनी

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  4. वशिनी जी रोमांचक भी था और रोमांटिक भी.. हा हा ...

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