किसी भी देश की अंतरराष्ट्रीय भाषाई पहचान के लिए जरूरी है कि उसकी एक
राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। यह भाषा ऐसी हो, जिसे सीखने, उसका साहित्य पढऩे
की ललक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए। भारत के संदर्भ में यह
विचारणीय विषय है कि अभी तक यहां हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल
सका है जबकि पूरी दुनिया में यह एक लोकप्रिय भाषा के रूप में उभरकर सामने
आई है। इसकी लिपि सर्वाधिक वैज्ञानिक है। हिंदी का साहित्य बहुत समृद्ध
है। बहुत बड़ी संख्या में हिंदी बोलने वाले लोग है। मारीशस, फिजी,
सिंगापुर, कनाडा आदि में तो हिंदी के प्रति व्यापक रुझान दिखाई देता है।
भारत में हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया है लेकिन इसके व्यापक उपयोग को
लेकर सरकार की उदासीनता दिखाई देती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण
राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हिंदी केप्रति बरती जा रही उदासीनता है।
संसद में भी राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी को बढ़ावा देने की मांग उठ चुकी
है लेकिन आयोजक और सरकार नहीं चेती है। राजभाषा समर्थन समिति मेरठ इस
दिशा में पहल करते हुए जनआंदोलन के तेवर अख्तियार किए हुए है लेकिन इसमें
अन्य संगठनों की भागीदारी और व्यापक जनसमर्थन की जरूरत है।
राष्ट्रमंडल खेलों में राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देना इसलिए भी जरूरी है
कि उस दौरान कई देशों के लोग आयोजन में शामिल होंगे। उन्हें न केवल
भारतीय संस्कृति की जानकारी दी जाए बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो
रही राजभाषा हिंदी से भी परिचय कराया जाना चाहिए। ऐसा करके राष्ट्रीय
गौरव को बढ़ाया जा सकता है। इस सत्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि देश
में हिंदी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक है और पूरी दुनिया में हिंदी
को लेकर व्यापक संभावनाएं परिलक्षित हो रही हैं। फिर देश के भाषाई गौरव
केशिखर पर हिंदी को प्रतिष्ठित करने में देरी क्यों? राष्ट्रमंडल खेलोंके माध्यम से हिंदी को बढ़ावा देना समय की जरूरत है। इसकेलिए राजभाषा समर्थन समिति मेरठ के सुझावों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
समिति के सुझाव हैं-
1. राष्ट्रमंडल खेलों की वेबसाइट हिंदी में तुरंत बनाई जाए।
2. दिल्ली पुलिस और नई दिल्ली नगरपालिका द्वारा सभी नामपट्टों व संकेतकों
में हिंदी का भी प्रयोग हो ।
3. राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान वितरित की जाने वाली सारी प्रचार सामगी
हिंदी में भी तैयार की जाए।
4. राष्ट्रमंडल खेलों के आंखों देखे हाल के प्रसारण की व्यवस्था हिंदी में भी हो।
5. पर्यटकों व खिलाडियों के लिए होटलों व अन्य स्थानों हिंदी की किट भी
वितरित की जाए।
6. उदघाटन व समापन समारोह भारत की संस्कृति व भाषा का प्रतिबिम्बित करते
हों। सांस्कृतिक कार्यक्रम देश की गरिमा के अनुरूप हों। राष्ट्रपति ,
प्रधानमंत्री व अन्य प्रमुख लोग अपनी भाषा में विचार व्यक्त करें।
7. राष्ट्रमंडल के देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्ययोजना
तैयार की जाए।
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Sunday, August 29, 2010
गृहराज्यमंत्री द्वारा खेल मंत्रालय और आयोजन समिति को स्पष्ट निर्देश
27 जुलाई 2010 को अक्षरम के संयोजन में राजभाषा समर्थन समिति , मेरठ के सहयोग से दिल्ली मे हुई गोष्ठी का परिणाम सामने आ गया है । इस गोष्ठी में कई संसद सदस्यों, पत्रकारों, साहित्यकारों, खेल विशेषज्ञों ने शिरकत की थी। उपस्थित जन समुदाय को सांसद कलराज मिश्रा, हुक्म देव नारायण यादव,
प्रदीप टमटा और राजेन्द्र अग्रवाल तथा केन्द्रीय हिंदी समिति के सदस्य श्री रत्नाकर पांडेय ने आश्वासन दिया था कि वे इस मामले को संसद में उठाएंगे और संबद्ध विभागों से बात करेंगे। गोष्ठी में पत्रकार वेदप्रताप वैदिक, रामशरण जोशी, साहित्यकार श्री गंगा प्रसाद विमल, कमेंटटर श्री
जसदेव सिंह और रवि चतुर्वेदी ने भी भाग लिया था। इस क्रम में श्री हुक्मदेव नारायण यादव ने मामले को संसद में उठाया और गृह मंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा । श्री हुक्म देव नारायण यादव की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही और उन्होंने अन्य सदस्यों के साथ मिलकर दबाव बनाया ।
पत्र उपयुक्त कार्यवाही के लिए गृह राज्यमंत्री के पास आया जिन्होंने गोष्ठी में उठाए गए सभी मामलों को ना केवल अग्रसारित किया बल्कि राजभाषा विभाग की ओर से इस मामले में निर्देश जारी किए । गृहराज्यमंत्री औरगृहमंत्री द्वारा जारी पत्र की प्रतियां संलग्न है। इनके आधार पर इस
अभियान की आगे दिशा तय की जा सकती है।
प्रदीप टमटा और राजेन्द्र अग्रवाल तथा केन्द्रीय हिंदी समिति के सदस्य श्री रत्नाकर पांडेय ने आश्वासन दिया था कि वे इस मामले को संसद में उठाएंगे और संबद्ध विभागों से बात करेंगे। गोष्ठी में पत्रकार वेदप्रताप वैदिक, रामशरण जोशी, साहित्यकार श्री गंगा प्रसाद विमल, कमेंटटर श्री
जसदेव सिंह और रवि चतुर्वेदी ने भी भाग लिया था। इस क्रम में श्री हुक्मदेव नारायण यादव ने मामले को संसद में उठाया और गृह मंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा । श्री हुक्म देव नारायण यादव की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही और उन्होंने अन्य सदस्यों के साथ मिलकर दबाव बनाया ।
पत्र उपयुक्त कार्यवाही के लिए गृह राज्यमंत्री के पास आया जिन्होंने गोष्ठी में उठाए गए सभी मामलों को ना केवल अग्रसारित किया बल्कि राजभाषा विभाग की ओर से इस मामले में निर्देश जारी किए । गृहराज्यमंत्री औरगृहमंत्री द्वारा जारी पत्र की प्रतियां संलग्न है। इनके आधार पर इस
अभियान की आगे दिशा तय की जा सकती है।
Saturday, August 21, 2010
टपकती रही छत स्टेडियम की ,करते रहे हम कमेंट्री ,,वाह वाह....
आज इंदिरा गाँधी स्टेडियम में जिम्नास्टिक का टेस्ट इवेंट शुरू हुआ.हम बहुत तैयारी के साथ बैठे टीवी कमेंट्री करने ..सुरक्षा जांच वालो ने हमें पानी की बोतल नहीं लाने दी.हमारा सेब भी वापिस करवा दिया ,हमने कहा कोई नहीं ,मीडिया सेंटर में तो सब मिल ही जाएगा ,एक घंटा हुआ २ घंटे हुए. हम पानी वानी,चाय का इंतज़ार करते रहे ,पर वह न आया और न उसकी कोई खबर आई .कई घंटे लगातार बोलना फिर पानी नहीं मिलना,हमें तुरंत ईश्वर याद आ गए .उन्होंने भी बिना देर किये हमारी सुन ली ,और पानी बरसने लगा ,खूब बरसा ,अचानक मेरे मुह पर पानी की बूँद गिरी ,,उपर देखा तो छत से पानी की टप टप बूँद गिरने लगी.भगवान के घर देर है अंधेर नहीं.भगवान ने सीधा अपने घर से हमारे लिए supply भेज दी,सच में जय हो प्रभु .
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